भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में प्रयुक्त रथ के पहिए का दर्शन कर सकेंगे प्रदेशवासी

PTV BHARAT  रायपुर 10 फरवरी 2024 रायपुर उत्तर विधायक पुरंदर मिश्रा ने पत्रकार वार्ता लेकर जानकारी दी की भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा में प्रयुक्त रथ के पहिए को पहली बार छत्तीसगढ़ भक्तों के दर्शन के लिए पुरी धाम से लाया गया है जिसकी दर्शन यात्रा रायपुर राजनांदगांव सहित अन्य स्थलो में निकाली जाएगी। यह यात्रा सुबह दस बजे गायत्री नगर से पूजापाठ के बाद निकाली जाएगी और शहर के विभिन्न प्रमुख मार्गों में भ्रमण करेगी और लोग रथ के पहिए का दर्शन कर सकेंगे।आगे उन्होने रथ के बारे में विस्तार से जानकारी दी। जगन्नाथ जी के रथ को नंदीघोष, बलभद्र जी के रथ को तलध्वजा एवं सुभद्रा जी के रथ को दर्पदलना कहा जाता है। जगन्नाथ जी के रथ में 16 बलमद जी के रथ में 14 एवं सुभद्र जी के स्थ में 12 पहीये होते है। जगन्नाथ जी के रथ को बनाने में 832, बलभद्र जी के रथ को बनाने में 763 एवं सुभद्रा जी के रथ को बनाने में 553 लकड़ी के तुकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है।

जगन्नाथ जी के रथ की उच्चाई 44.02 फीट बलभद्र जी के रथ की उंच्चाई 43.03 फीट एवं सुभद्रा जी के रथ की उंच्चाई 42.03 फीट होती है।जगन्नाथ जी के रथ का छत्र लाल/पिला, बलमद्र जी के रथ का छत्र लाल/हरा/नीला एवं सुभद्रा जी के रथ का छत्र काला रंग का होता है। जगन्नाथ जी के रथ के अभिभावक गरूड़, बलभद्र जी के रथ के अभिभावक वासुदेव एव सुभद्रा जी के रथ के अभिभावक जमदुर्गा होते है। जगन्नाथ जी के रथ को हर वर्ष नया बनाया जाता है।

 रथ को बनाने में कभी भी किल या लोहे अथवा किसी भी धातु का इस्तेमाल नही किया जाता है। रथ को बनाते वक्त लकड़ी काटने के लिए पहला वार सोने की हथौड़ी से लगाया जाता है। रथ को खींचने के लिए नारियल के रस्सियों का इस्तेमाल होता है। रथ को बनाने में लगभग 2 महीने का समय लगता है इस दौरान रथ को बनाने वाले कारीगर दिन में सिर्फ एक बार ही सादा भोजन ग्रहण करते है।पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में मान्यता है कि जगन्नाथ जी की रथ यात्रा का फल सौ यज्ञों के फल के बराबर है, रथ की रस्सी को छुने मात्र से ही पापों का क्षय होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है यही बजह है कि रथ यात्रा में हर साल देश विदेश से लाखो श्रद्वालु पुरी पहुंचते है। जय जगन्नाथ चारो धामों में स्थापित एक सुप्रसिद्ध जगन्नाथ धाम पु री मंदिर का इतिहास बहुत ही अदभुत है, माना जाता है कि भगवान विष्णु का हृदय आज भी पुरी के मंदिर में स्थित काष्ठ की प्रतिमाओं में धड़क रहा है। इस मंदिर में स्थापित प्रतिमाओं का इतिहास है पूरी के तात्कालीन राजा इंद्रदुम्न को सपने में एक झील के किनारे पर एक विशाल काय की लकड़ी का टुकड़ा तैरता हुआ दिखाई दे रहा है जिसे पूरी के तात्कालीन राजा इंद्रदुम्न ने सपने में देखा और उसकी पूजा की। ऐसा करने से पहले अगली सुबह राजा समुद्र तट घे और सच में एक महानिम लकड़ी को तुकड़ा मिला जिसे राजा अपना महल ले आया। आधी मूर्ति प्रतिमा की कहानी :-

 लकड़ी का टुकड़ा तो मिल गया था पर उसे मूर्ति रूप द एने वाला कोई नहीं मिल रहा था, राजा ने राज्य के शिल्पकारों को बुलाया और मूर्ति बनाने को कहा पर भी किसी ने उस टुकड़े को विच्छेदित नहीं कर पाया, यह देख का आर राजा बहुत उदास हो गया था उसी समय स्वयं भगवान विष्णु के रूप में प्रकट हुए और भगवान अनिलमाधव की लकड़ी से बनी मूर्ति का अनावरण किया गया, 21 दिन में उस मूर्ति को इस दौरान बनाया गया था, वो अकेले ही भगवान बुद्ध के रूप में बने थे। समय उन्हें कोई नहीं देख सकता, राजा को उनकी यह शतम आनी पाद। कुछ दिन तो कमरे के अंदर से अरी, चीनी और हथौड़ी की आवाज आती रही पर बाद में वो आवाज बंद हो गई राजा इंद रदुम्न और रानी गुंडिचा ने आपके सामने बनाई मूर्ति आने पर फ़ायदा का बूढ़ा पिता भूखा प्यासा से मर गया, यह एक और जिज्ञासा थी, डंके की चोट पर दरवाजा खोला की तस्वीर गई और देखें। जबकी बहन सुभद्रा के हाथ और पाँव दो ही नहीं बने थे, राजा ने इसे ही भगवान की इच्छा जताई थी, उन्हें अधूरी मूर्तियों को मंदिर में स्थापित कर दिया था, तब से लेकर आज तक भाई-बहन के समान रूप में मंदिर में विद्यामान है।

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