गर्भाशय से ट्यूमर निकाल महिला की बचाई गई जान

PTV BHARAT दुर्ग। भिलाई गया नगर दुर्ग निवासी 45 वर्षीय प्रेमलता निषाद को जिला अस्पताल में नया जीवन मिला। उनके शरीर 1 ग्राम खून की वजह निजी डॉक्टरों ने गर्भाशय के अंदर बने जिस ट्यूमर को निकालने से मना कर ​दिया था, जिला अस्पताल के डॉ. बीआर साहू ने स्टेबल करने के बाद उसे निकाल दिया। बीमारी की पहचान होने के बाद डॉ. बीआर साहू ने सबसे पहले प्रेमलता को स्टेबल करने योजना बनाई। इसके लिए उन्हें 13 जनवरी से 28 जनवरी के बीच 7 यूनिट ब्लड देना पड़ा। 15 दिनों में उसके शरीर में ब्लड के मात्रा 7 ग्राम से ज्यादा हो गई तो 29 जनवरी को सर्जरी की तारीख नियत की। इस क्रम में आगे निश्चेतना विशेषज्ञ डॉ. विभा साहू सर्जरी के दौरान प्रेमलता का ब्लड प्रेशर व सांस मेनटेन रखने क्लीयरेंस दिया तो डॉ. बीआर साहू ने सर्जरी कर ट्यूमर को बाहर निकाल दिया। उनके अनुसार बाहर निकाले गए ट्यूमर का वजन करने पर 3 किग्रा मिला। डॉ. बीआर साहू के मुताबिक ट्यूमर की वजह ही महिला को बार-बार खून की कमी हो जा रही थी। सर्जरी से सिर्फ उसे खून जाने की परेशानी से निजात ही नहीं मिली, जान भी बच गई। जिला अस्पताल में सरकारी ब्लड बैंक होने से प्रेमलता का संजीवनी मिली। क्योंकि सामान्य परिवार के लिए 7 से 8 यूनिट ब्लड जुटाना ​मुश्किल भरा काम है। क्योंकि ब्लड बैंक से ब्लड लेने के लिए डोनेशन लेने का नियम है। लेकिन जिला अस्पताल के ब्लड बैंक में ​रेगुलर तौर पर स्वैच्छिक रक्त-दान शिविर होते रहते हैं। उनसे प्राप्त होने वाला ब्लड ही प्रेमलता को दिया गया और जान बचा ली गई। जिला अस्पताल के डॉक्टर ट्यूमर की सर्जरी करते हुए। ^प्रेमलता के परिजन मेरी ओपीडी में उसे लेकर पहुंचे थे। उसकी हालत देखने के बाद खून जांच कराया तो वह 1.6 ​ग्राम मिला। तत्काल उसे भर्ती कर खून चढ़वाना शुरू किया। आगे सिविल सर्जन ने अल्ट्रासाउंड किया तो उसमें गर्भाशय में ट्यूमर दिखाई दिया। ऐसे में स्टेबल कर उसकी सर्जरी की गई। गर्भाशय से 3 किग्रा का ट्यूमर निकाला गया। – डॉ. बी आर साहू, स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ स्वस्थ्य महिला के शरीर में 11 से 12 ग्राम खून होना चा​हिए। ऑपरेशन के लिए डॉक्टर कम से कम 8 ग्राम खून होने का मानक रखते हैं। क्योंकि 7 ग्राम से कम खून होने के बाद संबंधित को चक्कर आना, सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। 1.6 ग्राम खून म​त​लब महिला को अपने पैरों पर खड़ी होना भी मुश्किल था। घर वाले उसे स्ट्रेचर पर लेकर पहुंचे थे, सर्जरी के बाद वह चलकर घर गई।

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