लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर ने संत जैसा जीवन जीते हुए भारत को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बांधा- डॉ टोपलाल वर्मा

PTV BHARAT रायपुर। पुण्य श्लोक लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर त्रिशताब्दी जयंती आयोजन समिति रायपुर महानगर की ओर से बुधवार (16 अक्टूबर,2024) को डॉ राधाबाई शासकीय नवीन कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रायपुर के सभागार में अहिल्याबाई होलकर के जीवन पर आधारित व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ सच्चिदानंद शुक्ल, कुलपति पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़,मुख्य वक्ता डॉ टोपलाल वर्मा माननीय संघचालक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ छत्तीसगढ़ प्रांत,अध्यक्षता डॉ सी एल देवांगन प्राचार्य डॉ राधाबाई शासकीय नवीन कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय रायपुर,श्रीमती विशिष्ट अतिथि प्रियदर्शिनी दिव्य जी थे।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ सच्चिदानंद शुक्ल, कुलपति पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर सामाजिक परिवर्तन की वाहक थीं। उन्होंने घुमन्तू समाज के उत्थान के लिए काम किया। भीलों के लिए भील कौड़ी की शुरुआत की और उन्हें कृषि के लिए प्रेरित किया। वह युद्ध क्षेत्र में स्वयं जाकर सैनिकों का उत्साह बढ़ाती थीं। उन्होंने महिलाओं की सेना का गठन किया। राज्य की आय कैसे बढ़ सकती है, इसके लिए आर्थिक सुधार किये। महारानी ने उद्योग, व्यापार व आर्थिक उन्नति का ढांचा तैयार किया। डॉ सच्चिदानंद शुक्ल ने अपने उद्बोधन में कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई होलकर को समाज के सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य करने के कारण उन्हें जनता ने लोकमाता का दर्जा दिया। अहिल्याबाई होलकर,भारत के मालवा साम्राज्य की महारानी थीं।अहिल्याबाई होलकर ने कई धार्मिक कार्य किए।उन्होंने औरंगज़ेब द्वारा तोड़े गए मंदिरों का दोबारा निर्माण करवाया।अहिल्याबाई होलकर ने काशी विश्वनाथ मंदिर,सोमनाथ मंदिर, विष्णुपद मंदिर,बैजनाथ मंदिर, और एलोरा के गणेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।अहिल्याबाई होलकर ने अपने राज्य की रक्षा के लिए कई युद्ध लड़े।अहिल्याबाई होलकर को महिला सशक्तिकरण की मिसाल माना जाता है। विशिष्ट अतिथि श्रीमती प्रियदर्शिनी दिव्य जी ने कहा कि जिस तरह से लोकमाता अहिल्याबाई होलकर ने विषम परिस्थितियों में भी अपने शासनकाल में समाज कल्याण के साथ ही साथ महिला उत्थान के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया ऐसे ही महाविद्यालय के प्रत्येक छात्रा विशेष कार्य कर इस समाज में अपनी पहचान बना सकतीं हैं।
आयोजन समिति के सचिव संजय जोशी ने कार्यक्रम के आयोजन का उद्देश्य बताते हुए कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के कार्यो को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना तथा उनके विचारों को जीवन में उतारना है।
मुख्य वक्ता डॉ टोपलाल जी ने कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के कार्यो को स्वयंसेवकों एवं प्रबुद्ध नागरिकों द्वारा लोगों तक पहुंचाना है। डॉ वर्मा जी ने कहा कि संत स्वरूपा पुण्यश्लोक लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर साक्षात देवी थीं। संत जैसा जीवन जीते हुए उन्होंने साधना के साथ शासन किया। उनकी राजाज्ञाओं पर ‘श्री शंकर आज्ञा’ लिखा रहता था। गायों को चरने के लिए भूमि खाली छोड़ने और पक्षियों व मछलियों के लिए दाना डालने की व्यवस्था थी। अहिल्याबाई सर्वभूत हिते रत: अर्थात सबके कल्याण के लिए वह काम करती थीं। पूरी प्रजा उन्हें माँ मानती थी। इसलिए वह लोकमाता कहलायीं। सांस्कृतिक पुनरुत्थान की दृष्टि से देखें तो उन्होंने मुगल साम्राज्य के कारण ध्वस्त हो चुके तीर्थस्थलों का पुनर्निर्माण कराया। अहिल्याबाई स्वयं के बजाय भगवान शिव को अपने राज्य का शासक मानतीं थी और स्वयं को प्रतिनिधि मानतीं थी।राज सिंहासन पर शिव विराजमान होते थे।इस प्रकार से लोकमाता अहिल्याबाई होलकर ने मालवा राज्य में शासन किया।उनका पल-पल,क्षण-क्षण लोककल्याण पर समर्पित रहा है।इसलिए अहिल्याबाई होलकर को लोकमाता का दर्जा मिला। युद्ध में भी लोकमाता अहिल्याबाई होलकर बढ़-चढ़कर भाग लेती थी।न्याय व्यवस्था को मजबूत करने के लिए अहिल्याबाई होलकर ने वकीलों की नियुक्ति किया।मंदिरों का निर्माण एवं उसके जीर्णोद्धार के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया। अहिल्याबाई होलकर एवं कुशल शासक के साथ ही साथ कुटनीतिज्ञ और राजनीतिज्ञ भी थी। पिछले 2 हजार वर्षों में देश में सांस्कृतिक एकता के लिए अहिल्याबाई ने सर्वाधिक कार्य किए।

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