PTV BHARAT 26 Sep 2024 बस्तर शांति समिति के बैनर तले छत्तीसगढ़ से निकल कर दिल्ली की यात्रा पर गए 50 से अधिक नक्सल पीड़ित बस्तरवासी अब रायपुर लौट चुके हैं। दिल्ली में हम पीड़ितों ने राष्ट्रपति से लेकर गृहमंत्री तक को अपनी पीड़ा सुनाई इसके अलावा पीड़ित बस्तरवासी जेनएयू और दिल्ली यूनिवर्सिटी के कैम्पस भी पहुँचे, जहां पढ़ने वाले विद्यार्थियों से संवाद किया और नक्सलियों के साथ-साथ उनके शहरी समर्थकों को भी ललकारा। दिल्ली से रायपुर लौटे पीड़ितों ने आज प्रेस क्लब में प्रेस वार्ता की, और अपनी दिल्ली यात्रा के बारे में पत्रकारों को विस्तृत जानकारी दी। पीड़ितों ने बताया कि दिल्ली पहुंचने के बाद उन् होंने सबसे पहले 19 सितंबर को जंतर मंतर में मौन विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन के दौरान पीड़ितों ने बस्तर में ति स्थापित करने की मांग की और नक्सलियों के समर्थकों से पूछा कि हमारे अधिकार के लिए आप कुछ क्यों नहीं बोलते हैं ? प्रेस वार्ता में पीड़ितों ने बताया कि जंतर मंत र से निकलने के पश्चात उनके पूरे प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय गृहमंत्रु से मुलाकात की, उनके साथ एक टेबल में बैठकर नाश्ता किया और उन्हें अपनी व्यथा सुनाई। केंद्रीय गृह मंत्री जी ने लगभग 1 घंटे तक सभी ़ितों की व्यथा व्यक्तिगत स्तर पर सुनी। केंद्रीय गृहमंत्री ने बस्तरवासियों की पीड़ा सुनने के बाद यह आश्वासन दिया कि गृहमंत्रालय सिर्फ उनकी चिंता कर रहा है, बल्कि मोदी सरकार जल कराने के लिए प्रतिबद्ध भी है। इस दौरान केंद्रीय गृहमंत्री को बस्तर शांति सम िति की ओर से बस्तर में शांति स्थापित करने की मांग हेतु एक ज्ञापन भी सौंपा गया। रायपुर में हुई प्रेस वार्ता के दौरान बस्तर शां ति समिति ने बताया कि 20 सितंबर को पीड़ितों का दल पहुँचा, जहां प्रेस वार्ता की गई। इस दौरान पत्रकारों को नक्सल पीड़ितों पर बनी एक डॉक्यूमेंट्री भी दिखाई गई और पीड़ितों ने अपनी कहानी भी सुनाई। चूंकि छत्तीसगढ़ में माओवादी आतंक का पूरा कंट् रोल आंध्र के माओवादियों के हाथ में है, इसीलिए कॉन्स्टिट्यूशन क्लब से निकलकर पीड़ितों ने प् रतीकात्मक रूप से आंध्रा भवन का रुख किया और वहीं भोजन कर यह संदेश दिया कि अब छत्तीसगढ़ को उनसे भय नहीं लगता है।बस्तर शांति समिति के सदस्यों ने बताया कि हमने सुना है कि माओवादियों की हिंसा की घटनाओं के बाद जेनएयू जैसे विश्वविद्यालय में इस पर चर्चा एं होती हैं, यहां माओवादियों के शहरी पैरोकार बैठे होते हैं, इसीलिए हम पीड़ितों ने जेनएयू जा ने का भी निर्णय लिया। जेनएयू में हम 20 सितंबर की शाम को पहुँचे और वहां के विद्यार्थियों और शिक्षकों के बीच अपनी कहानी सुनाई, बस्तर की असली पीड़ा बताई।