PTV BHARAT मध्यप्रदेश ने तेजी से वैश्विक कृषि निर्यात बाजार में अपना स्थान बना लिया है। प्रदेश के बुरहानपुर जिले से इराक, ईरान, दुबई, बहरीन और तुर्की को सालाना 30 हजार मीट्रिक टन केले का निर्यात हो रहा है। बुरहानपुर केले की प्रसिद्धि दूर-दूर तक पंहुच गई है। केला उत्पादक किसानों की मेहनत और सरकार की मदद ने बुरहानपुर को एक नई पहचान दिलाई है। लगभग 19000 केला उत्पादक किसान 23,650 एकड़ क्षेत्र में केले की फसल ले रहे हैं। इसमें बुरहानपुर से ही सालाना औसत 16.54 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन होता है। एक जिला-एक उत्पाद योजना में केले को शामिल करने के बाद केला उत्पादक किसानों ने उत्साहपूर्वक निर्यात अवसरों का भरपूर लाभ उठाया है।
कृषि निर्यात बाजार में किसानों की गहरी रुचि, कृषि व्यापार के मज़बूत बुनियादी ढांचे और निर्यात कंपनियों की अच्छी उपस्थिति के कारण बुरहानपुर केले को अच्छा घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार मिल गया है। यहां मुख्य रूप से जी-9, बसराई, हर्षाली, श्रीमंथी किस्में उगाई जा रही हैं। प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम योजना में केला उत्पादन और प्रसंस्करण को बढ़ावा मिल रहा है। परिणामस्वरुप बुरहानपुर में 30 केला चिप्स प्रसंस्करण इकाइयाँ स्थापित हैं। कुछ इकाईयाँ केले का पाउडर भी बना रही हैं और मार्केट की तलाश में है।
बुरहानपुर के प्रवीण पाटिल अच्छे मुनाफे से खुश हैं। उनके पास दापोरा गांव में 60 एकड़ जमीन है, जो बुरहानपुर जिला मुख्यालय से 16 किमी दूर है। दापोरा एक ग्राम पंचायत है जिसमें लगभग 700 घर हैं। उन्होंने केले की खेती का गुर अपने पिता और दादा से सीखा।
प्रवीण बताते हैं कि पिछले दो सीजन में बाजार भाव अच्छा रहा। बाजार की मांग के अनुसार 2,000 से 2,500 प्रति क्विंटल तक केला बिका। हर सीजन अच्छा नहीं रहता। कई बार मांग और आपूर्ति में भारी अंतर होता है।
खेती की लागत के बारे में प्रवीण बताते हैं कि यह लगभग प्रति पौधा 140 रु. तक आती है। वे बताते हैं कि 300 से 500 पौधे लगाते हैं। सब कुछ ठीक रहा तो 450 से 500 क्विंटल तक उत्पादन होता है। अत्यधिक वर्षा, मौसम और खेतों में पानी का भराव केले के पौधों को नुकसान पहुंचाता है, जो कक्यूम्बर मोज़ेइक वायरस – सीएमवी का शिकार हो जाते हैं। वे कहते हैं कि वायरस लगे पौधों को नष्ट करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।