नास्तिक मुस्लिमों पर शरिया लागू होगा या नहीं? इस पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट

PTV BHARAT नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट उस याचिका पर विचार करने के लिए सोमवार को सहमत हो गया, जिसमें यह मांग की गई है कि मुस्लिम परिवारों का जो व्यक्ति मुस्लिम पर्सनल ला या शरिया कानून न मानना चाहे उस पर भारतीय उत्तराधिकार कानून लागू होना चाहिए। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने याचिका पर केंद्र और केरल सरकार को नोटिस जारी किया। पीठ ने अटार्नी जनरल, आर. वेंकटरमणी से एक कानून अधिकारी को नामित करने के लिए कहा जो अदालत की सहायता कर सके। इस मामले की अगली सुनवाई जुलाई के दूसरे सप्ताह में होगी। केरल निवासी और ‘एक्स-मुस्लिम्स आफ केरल’ की महासचिव साफिया पीएम नाम की महिला ने याचिका दायर कर कहा है कि इस्लाम में उसकी आस्था नहीं है हालांकि आधिकारिक तौर पर इस्लाम नहीं छोड़ा है। अनुच्छेद 25 के तहत धर्म के मौलिक अधिकार चाहती हैं। इसमें ‘किसी भी धर्म को न मानने का अधिकार’ भी शामिल है। इसलिए उस पर मुस्लिम पर्सनल ला (शरिया कानून) के बजाय विरासत के संबंध में भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 लागू होना चाहिए। कहा कि उसके पिता की भी मुस्लिम धर्म में आस्था नहीं लेकिन उन्होंने भी आधिकारिक तौर पर धर्म नहीं छोड़ा है। याचिका में कहा गया, शरिया कानून के अनुसार जिस व्यक्ति की इस्लाम में आस्था खत्म हो जाती है उसे मुस्लिम समुदाय से बाहर कर दिया जाता है। इस कारण वह अपनी पैतृक संपत्ति में किसी भी विरासत के अधिकार की हकदार नहीं होगी। शरिया कानून के अनुसार जिसने इस्लाम छोड़ दिया है, वह विरासत का अधिकार खो देगा। धर्म छोड़ने के बाद विरासत के अधिकार के लिए कोई प्रविधान नहीं होने से खतरनाक स्थिति हो जाएगी क्योंकि न तो भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम और न ही शरिया कानून उसकी रक्षा कर सकेंगे। याचिकाकर्ता से अनुरोध किया है कि उस पर भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के प्रविधान लागू होना चाहिए। याचिकाकर्ता का मानना है कि शरिया कानून मुस्लिम महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण हैं।

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